सपने और हकीकत का सफर

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अध्याय 1 : बचपन की वो गलियाँगाँव की संकरी गलियों में मिट्टी की खुशबू फैली हुई थी।सर्दी की सुबह, सूरज धीरे-धीरे बादलों के पीछे से झाँक रहा था।मकानों की छतों से धुआँ उठ रहा था—कहीं लकड़ी के चूल्हे से, तो कहीं गोबर की उपलों से।इन्हीं गलियों में एक छोटी-सी लड़की दौड़ रही थी—रिशिका।उसकी चोटी हवा में लहरा रही थी, और हाथ में फटी-पुरानी किताब थी।“अरे! धीरे भाग पगली, गिर जाएगी!”उसकी माँ आँगन से चिल्लाईं।“अम्मा, लेट हो जाऊँगी स्कूल से… मास्टरजी डाँटेंगे।”रिशिका हाँफते हुए बोली।वह स्कूल पहुँचने वाली थी, तभी पीछे से आवाज़ आई—“रिशिका… रुको!”वह पलटी तो देखा, हाथ में स्लेट