संस्मरण : गांभीर्य, खिलंदड़ापन और अपनेपन का संगम राजेंद्र यादव

  • 54

संस्मरण : गांभीर्य, खिलंदड़ापन और अपनेपन का संगम राजेंद्र यादव _________________________   अनेक बार लगता है जब किताबों से दूर होता हूं। कहीं दूसरे शहर जहां पर परिचित नहीं होते और कुछ दिनो के लिए होता हूं। तो बचा वक्त, पता नही कैसे, प्रकृति से बातें करने में, मौसम के रंग देखने और अपने अंदर झांकने में निकल जाता है। खामोश नदी बहती है और उसके साथ साथ मै भी बहता रहता हूं। आसपास देख रहा होता हूं। उनसे जुड़ता भी हूं पर नदी आगे बहा ले जाती है। सबके साथ रहना, घूमना बात करना चाहता हूं पर एक समय बाद