खामोश परछाइयाँ - 2-3

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रिया के कमरे की खिड़की अब भी आधी खुली थी। बाहर गहरी रात का सन्नाटा था, पेड़ों की शाखें हवा में हिलकर अजीब-सी फुसफुसाहट पैदा कर रही थीं। हल्की चाँदनी कमरे में उतर रही थी और उसी चाँदनी में वह परछाई साफ़-साफ़ दिख रही थी।रिया का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा। उसने जल्दी से खिड़की को बंद कर दिया, लेकिन तभी उसके पीछे से बर्फ़ जैसी ठंडी हवा का झोंका गुज़रा। रिया ने काँपते हुए पलटकर देखा—कमरा तो खाली था, लेकिन माहौल अजीब-सा भारी हो गया था।अचानक उसकी मेज़ पर रखी एक पुरानी डायरी अपने-आप खुल गई।रिया हैरान रह गई—ये