ऋचा जी के पिताजी का व्यवहार देख कर मैं अचंभित रह गया, कि आज के जमाने मे भी ऐसी दकियानूसी सोच वो भी अपनी ही बेटी के लिए, लेकिन मैं इसके लिए उनको दोषी भी नही मानता हूँ, असल मे ये हमारे समाज का ही बुना हुआ एक ताना बाना है जो पिछले कई वर्षों से चला आ रहा है। शायद उनकी जगह मेरे पिताजी भी होते तो ऐसा ही व्यवहार करते। ठाकुर साहब का व्यवहार देख कर सिंह साहब भी अवाक रह गए लेकिन उन्होंने मुँह से एक शब्द भी ना बोला, वहां पर मामले की गंभीरता को समझते