प्रेमानंद जी : राधा-कृष्ण लीला के रसिक साधक - 2

भाग 2 : गुरु-दीक्षा और साधना मार्ग1. भक्ति की तृष्णा और गुरु की खोजजब कोई आत्मा जन्म से ही भक्ति-रस में रंगी होती है, तो उसका हृदय किसी न किसी गुरु की तलाश में स्वयं ही निकल पड़ता है। प्रेमानंद जी का जीवन भी इसी पथ पर चला। किशोर अवस्था तक आते-आते उनके भीतर भक्ति की तृष्णा इतनी तीव्र हो चुकी थी कि वे दिन-रात केवल यही सोचते – “मुझे वह गुरुदेव कब मिलेंगे जो मुझे राधा-कृष्ण के सच्चे मार्ग पर ले जाएँगे?”उनका मन किसी सांसारिक आकर्षण में नहीं रमता था। लोग कहते – “इतनी छोटी उम्र में यह लड़का