अधूरा सच - 2

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---अध्याय 2 – पत्रकार की जिज्ञासासुबह का सूरज निकल चुका था, लेकिन आरव की आँखों में अब भी पिछली रात के मंज़र घूम रहे थे। वह हत्या की जगह से लौट तो आया था, मगर उसका दिमाग बार-बार उसी कागज़ पर अटक जा रहा था, जिस पर सिर्फ एक नाम लिखा था—“सिद्धार्थ”।वह अपने छोटे से कमरे में बैठा था। सामने टेबल पर खुला हुआ लैपटॉप, बगल में अधूरी चाय और दीवार पर टंगी हुई घड़ी जिसकी टिक-टिक मानो उसे याद दिला रही थी कि समय बीत रहा है। पत्रकार होने के नाते उसने कई क्राइम स्टोरीज़ कवर की थीं, लेकिन