प्रकृति जा चुकी थी।कबीर वहीं खड़ा सोचता ही रह गया… दिमाग में एक ही ख्याल गूंज रहा था –“मैं तो बस अपने दोस्त को इस गिल्ट से बाहर निकालना चाहता हूँ… पर अब क्या करूँ? कैसे करूँ? अगर प्रकृति सच में चली गई तो रिद्धान कभी सच्चाई जान ही नहीं पाएगा।”वो बेतहाशा टहलने लगा… सिर पकड़कर बैठ गया… “क्या करूँ… क्या करूँ…”---उधर ऑफिस में रिद्धान अब भी बैठा हुआ था।पूरा स्टाफ जा चुका था, बत्तियाँ बुझ चुकी थीं, पर उसके केबिन में फाइलें, नोट्स और केस का सारा डेटा बिखरा हुआ था।उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं, नींद का नामोनिशान