अधूरा सच - 1

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---अध्याय 1 – अजीब रातरात का सन्नाटा कुछ अलग ही था। शहर की गलियों में हल्की धुंध तैर रही थी। स्ट्रीट लाइट की टिमटिमाती पीली रोशनी इस धुंध को और रहस्यमयी बना रही थी। हवा ठंडी थी, लेकिन उस ठंडक में एक अजीब बेचैनी भी घुली हुई थी। मानो कोई अदृश्य खतरा पूरे शहर पर छाया हो।पुराने बाज़ार के पीछे वाली गली अक्सर सुनसान रहती थी, लेकिन आज वहाँ हलचल थी। एक आदमी तेज़ी से भागता हुआ दिखाई दिया। उसके कदमों की आवाज़ कच्ची दीवारों से टकराकर गूंज रही थी। उसने बार-बार पीछे मुड़कर देखा, जैसे कोई उसका पीछा कर