भाग :14 रचना:बाबुल हक़ अंसारी “इश्क़ की अमानत”[मौत का सन्नाटा…]टिक-टिक रुक चुकी थी।सारा प्लेटफ़ॉर्म अब सन्नाटे में डूबा था।बस धुएँ और बारूद की गंध हवा में तैर रही थी।रिया ने कांपते हाथों से अयान का चेहरा थाम लिया —उसकी आँखें नम थीं, और होंठ काँप रहे थे। “अयान… तू बोल क्यों नहीं रहा?ये खामोशी… कहीं तेरी आख़िरी निशानी तो नहीं?”अयान चुप था।उसकी हथेली अब भी उस स्विच पर जमी हुई थी, और होंठों पर वही रहस्यमयी मुस्कान।[रिया