कबीर ने दरवाज़ा बंद किया और प्रकृति को अंदर लाकर सोफ़े पर बैठने का इशारा किया।उसने जल्दी से पानी का गिलास लाकर उसकी ओर बढ़ाया।“थोड़ा पानी पी लो… तुम बहुत परेशान लग रही हो।”प्रकृति ने काँपते हुए हाथों से गिलास लिया, लेकिन उसके होठों तक लाने से पहले ही आँखें भर आईं। उसने गिलास मेज़ पर रख दिया।उसकी आवाज़ में टूटन थी—“कबीर… तुम्हारा दोस्त मुझसे चाहता क्या है? वो आखिर मेरे पीछे क्यों पड़ा है? कभी इतनी नरमी से बात करता है जैसे मैं उसकी दुनिया हूँ… और कभी ऐसे बर्ताव करता है जैसे मैंने उसकी ज़िंदगी बर्बाद कर दी