एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 22

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रिद्धान की आँखें धीरे-धीरे खुलीं। सबकुछ धुँधला-सा लग रहा था। उसने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई — अजनबी-सा कमरा, लेकिन दीवार पर जो तस्वीर टंगी थी, उसे देखते ही उसका दिल थम गया।वो तस्वीर प्रकृति की थी।“मैं… यहाँ… कैसे?” उसकी आवाज़ काँप रही थी।उसने सिर पकड़ लिया, दर्द से कराह उठा।“कल… क्या हुआ था… मैं यहाँ कैसे आया?”इतना ही सोच रहा था कि दरवाज़ा खुला।प्रकृति अंदर आई — हाथ में नींबू पानी का गिलास।उसकी आँखें सूजी हुई थीं,  जैसे बहुत रोकर आई को  ,  पलकों पर अब भी नमी बाकी थी।“ये लो, इससे आराम मिलेगा,” उसने बिना उसकी आँखों में देखे