प्रेम वस्तुतः किनारे और लहर की कहानी है। यह कहानी उतनी ही पुरानी है जितनी सृष्टि स्वयं। एक ऐसी कथा, जिसमें मिलन का सुख क्षणिक है और जुदाई का दर्द शाश्वत। एक ओर किनारा है, जो स्थिर है, गम्भीर है और प्रतीक्षा में डूबा है। दूसरी ओर लहर है, जो व्याकुल है, चंचल है और हर पल अपने प्रवाह में बँधी है। दोनों एक-दूसरे से अनिवार्य रूप से जुड़े हैं, फिर भी नियति ने उन्हें सदा अधूरेपन की बेड़ियों में बाँध रखा है।किनारे की मौन पीड़ाकिनारा अपने वजूद में स्थिर है। उसकी रेत पर समय के अनगिनत निशान अंकित हैं।