धूमकेतू - 6

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भाग 6 – लावा अजय की सांसें रुक-सी गईं।गांव के रास्ते पर चलते हुए उसने जब अपना घर देखा, तो वो घर नहीं था… बस मलबे का ढेर पड़ा था।कभी जहां उसकी हंसी-खुशी की दुनिया थी, अब वहां धूल और राख का साम्राज्य था।उसकी आंखें कांप उठीं।“नहीं… ये सपना है, ये सच नहीं हो सकता।”लेकिन सच सामने था।घर का टूटा दरवाज़ा, बिखरी हुई दीवारें और कोनों में बिखरे हुए सामान।तभी उसे एक हल्की सिसकी सुनाई दी।कोने में बैठी उसकी बहन गीता फूट-फूटकर रो रही थी।अजय पागलों की तरह दौड़कर उसके पास आया।“गीता… क्या हुआ? मां और पिताजी कहां हैं? कैसे हुआ