वो कोई चौबीस–पच्चीस वर्ष की खूबसूरत सी लड़की दिखाई पड़ रही थी। तीखे नाक–नक्श और पथरायी हुई आँखें… जिनके कोरों से बहती अश्रुधारा उसके जीवित होने का प्रमाण दे रही थी। वो घर के बाहर दरवाजे की चौखट से सटी खड़ी थी और अपलक उस आँगन को निहार रही थी, जहाँ उसके घर के किसी सदस्य की अंतिम यात्रा की तैयारी हो रही थी। पूरे घर में मातम पसरा हुआ था और हर ओर से जोर–जोर से रोने की आवाजें उठ रही थीं।