श्रापित हवेली

शापित हवेली – अध्याय 1: परछाइयों का बुलावाबरसात की रात थी। आसमान में घने बादल छाए हुए थे, और बिजली की चमक बीच-बीच में धरती को सफेद चादर-सा कर रही थी। पहाड़ी रास्ते से नीचे, गाँव के लोग अपने-अपने घरों में दुबके हुए थे। हर कोई जानता था कि इस मौसम में पुरानी हवेली की ओर कोई न जाए।वह हवेली, जो गाँव से ज़्यादा दूर नहीं, लेकिन डरावनी चुप्पी में डूबी रहती थी। उसके ऊँचे खंडहरनुमा दरवाज़े, टूटी खिड़कियाँ और बेलों से ढकी दीवारें उस राज़ की गवाह थीं जिसे कोई ज़बान पर लाना नहीं चाहता था।---किरदारों की एंट्रीचार दोस्त