मीरा बाई : कृष्ण भक्ति की अमर साधिका - 2

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भाग 2 – संघर्ष और विरोध (लगभग 2000 शब्द प्रस्तावनामीरा बाई का जीवन केवल एक कवयित्री या भजन गायिका का जीवन नहीं था, बल्कि वह एक संघर्ष की गाथा थी। विवाह के बाद जब वे मेवाड़ की राजकुमारी बनीं, तो उनसे उम्मीद थी कि वे राजघराने की मर्यादा और परंपराओं का पालन करेंगी। लेकिन मीरा तो पहले से ही श्रीकृष्ण को अपना पति मान चुकी थीं। उन्होंने सांसारिक बंधनों से ऊपर उठकर केवल भक्ति को ही जीवन का आधार बनाया। यही कारण था कि उनके जीवन में लगातार विरोध और कठिनाइयाँ आती रहीं।--- महल का विरोधचित्तौड़गढ़ के महल में आते