खामोश ज़िंदगी के बोलते जज़्बात - 11

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                       भग:11                          रचना:बाबुल हक़ अंसारी             "टूटा भरोसा और अनकहा सच…"पिछले खंड से…    गुरु शंकरनंद की आँखें झुकीं।उनकी खामोशी ही सबसे बड़ा जवाब थी।आर्या और नीरव आमने-सामनेमंच पर भीड़ का शोर धीरे-धीरे थम चुका था।सबकी निगाहें अब सिर्फ़ आर्या और नीरव पर थीं।आर्या की आँखों में आँसू चमक रहे थे, पर होंठों से निकला स्वर किसी तलवार से कम न था —"नीरव, तुमने कहा था कि मैं तुम्हारी सबसे बड़ी ताक़त हूँ।फिर क्यों