कलंक

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रात काफी गहरी थी ,आसमान में काले बादल छाए थे। दूध सी सफेद चाँदनी में नहाया हुआ चाँद काले बादलों के पीछे से झाँक रहा था। उस चाँद का प्रतिबिंब पास ही की एक शांत नदी में बन रहा था। नदी के सामने कुछ ही दूरी पर माँ काली का पुराना मंदिर था। मंदिर ज्यादा पुराना था और गाव से भी काफी दूर इसी कारणवश कुछ लोग ही मंदिर आ पाते थे। मंदिर की देखभाल पंडित दीनदयाल के हाथों में थी। रोज सुबह मंदिर का गेट खोलना,ज्योत बत्ती करना उन्ही का काम था। पंडित दीनदयाल छोटी कद काठी के थे