हवेली के बाहर तूफ़ान ज़ोरों पर था। बिजली की गड़गड़ाहट से खिड़कियाँ हिल रही थीं और भीतर का माहौल किसी श्मशान से कम नहीं लग रहा था। तहखाने की उस गुप्त सुरंग से निकलते ही चिराग और राधिका ने खुद को एक बड़े कक्ष में पाया।कक्ष की दीवारों पर लाल रंग से बने हुए प्राचीन चिन्ह चमक रहे थे। बीच में चौकी पर रखा था—खून से सना हुआ टीका।जैसे ही राधिका की नज़र उस टीके पर पड़ी, उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।“चिराग… मुझे लग रहा है ये मुझे ही पुकार रहा है।”चिराग ने उसका हाथ पकड़ लिया—“नहीं राधिका! ये