खून का टीका - भाग 11

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तहखाने का भारी दरवाज़ा चरमराहट के साथ खुला। जैसे ही चिराग और राधिका अंदर कदम रखते हैं, घुप्प अंधेरा उनके चारों ओर छा जाता है। टॉर्च की हल्की-सी किरण दीवारों पर पड़ते ही जाले हिलने लगे। हवा इतनी ठंडी थी कि साँस लेना भी मुश्किल हो रहा था।अचानक टॉर्च की रौशनी में एक आकृति उभरती है।वो थी — नंदिनी।उसका चेहरा पीला पड़ चुका था, होंठ सूखे हुए और आँखों में खून उतर आया था। लेकिन सबसे डरावनी बात थी उसके माथे पर चमकता हुआ खून का टीका।राधिका के मुँह से चीख निकल गई—“नंदिनी… तुम तो… तुम तो मर गई थीं!”नंदिनी