समता के पथिक: भीमराव - 11

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एपिसोड 11 – नया धर्म, नई पहचान : बौद्ध धम्म की ओरथका हुआ मन, टूटा हुआ विश्वाससंविधान निर्माण का महान कार्य पूरा करने के बाद भी बाबासाहेब अंबेडकर के मन में एक टीस बनी रही।उन्होंने सोचा था कि संविधान लागू होने के बाद दलित समाज को बराबरी का हक़ मिलेगा, लेकिन हकीकत अलग थी।गाँवों में अभी भी अस्पृश्यता ज़िंदा थी।दलितों को कुएँ से पानी लेने नहीं दिया जाता, मंदिरों के द्वार उनके लिए बंद थे, और ऊँची जातियों का व्यवहार पहले जैसा ही था।बाबासाहेब कहते—“मैंने संविधान से बराबरी दिला दी, लेकिन समाज ने उसे स्वीकार नहीं किया। अगर हिंदू धर्म