मुंबई शहर।रात के यहीं कोई बारह बज रहे थे। लेकिन मुंबई शहर में इस वक्त भी चहल-पहल कुछ कम नहीं थी। गगनचुंबी इमारतों की रोशनी आसमान को चीरती हुई ऐसे चमक रही थी, जैसे तारे जमीन पर उतर आए हों। चौबीसों घंटे जागते इस शहर में रात और दिन का कोई फर्क महसूस ही नहीं होता था।सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों की हेडलाइट्स मानो रास्तों पर सुनहरी धारियां खींच रही थीं। दूर कहीं किसी होटल से धीमी-धीमी म्यूजिक की आवाज आ रही थी, जबकि फुटपाथ के किसी कोने में बेजान पड़ी जिंदगी से किसी को कोई खास मतलब नहीं था।लेकिन इन