खामोश ज़िंदगी के बोलते जज़्बात - 10

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                         भाग:10              रचना: बाबुल हक़ अंसारी           "शब्दों की आग और दिल का टकराव…"पिछले खंड से…   "लो, सच ने अपना रास्ता बना लिया।अब ये मंच किसी का नहीं… सबका है।"मंच की गरमी… भीड़ की बेचैनीतालियों की गूंज थमी नहीं थी।हर चेहरा किसी अनसुनी सच्चाई को सुनने को तैयार था।अनया ने पन्ना हाथ में लिया और कुछ पल आँखे बंद करके खड़ी रही।भीड़ बेक़रार हो उठी —"पढ़ो… पढ़ो!""क्या लिखा था त्रिपाठी जी ने?""और तुम क्या लिखोगी, बेटी?"गुरु शंकरनंद की गंभीर आँखें