भाग:11 रचना:बाबुल हक़ अंसारी "धमाके के बाद का सच"[धमाके की राख…]स्टेशन का पुराना दफ़्तर अब खंडहर बन चुका था।दीवारों पर दरारें, छत से झूलते लोहे के टुकड़े और ज़मीन पर बिखरा हुआ बारूद — मानो किसी जंग का मंजर हो।अयान धीरे-धीरे उठा, उसके कान अब भी धमाके की गूंज से बज रहे थे।उसने कांपते हुए आर्यन को हिलाया।“आर्यन… आँखें खोल! तु ठीक है ना?”आर्यन की हल्की कराह सुनकर अयान ने राहत की सांस ली।लेकिन तभी हवा में