गाँव के पुराने डाकघर में रखी एक लकड़ी की अलमारी में बहुत-सी पुरानी चिट्ठियाँ धूल खा रही थीं।डाकिया रामलाल हर रोज़ डाक बाँटता, पर उस अलमारी को कभी खोलने की ज़रूरत नहीं पड़ी।एक दिन सफ़ाई करते हुए उसने एक लिफ़ाफ़ा उठाया। उस पर लिखा था –“सीमा के नाम – परंतु कभी पहुँची ही नहीं।”रामलाल ने सोचा, “यह चिट्ठी किसकी होगी? क्यों नहीं पहुँची?”उसने धीरे-धीरे कागज़ खोला।चिट्ठी में लिखा था –> “सीमा,मैं शहर नौकरी की तलाश में जा रहा हूँ।अगर लौटकर न आ सका तो जान लेना कि मैंने तुम्हें दिल से चाहा है।इंतज़ार करना…– तुम्हारा मोहन”रामलाल ने गहरी साँस ली।