भाग 3 – युवावस्था और संन्यास की तलाशप्रस्तावनाहर महान व्यक्ति की यात्रा में एक ऐसा मोड़ आता है, जब वह जीवन के असली उद्देश्य की तलाश में निकल पड़ता है। नरेंद्र मोदी का जीवन भी इससे अछूता नहीं रहा। वडनगर की गलियों से निकलकर किशोरावस्था पार करने के बाद उनके भीतर गहरी जिज्ञासा और बेचैनी थी – “मैं क्यों हूँ? जीवन का असली मकसद क्या है? क्या मैं समाज और राष्ट्र के लिए कुछ बड़ा कर सकता हूँ?”यह बेचैनी ही उन्हें संन्यास की ओर खींच लाई।---किशोर से युवा होने की यात्रा1960 का दशक भारत के लिए बड़े बदलावों का दौर