22 (अंतिम भाग) प्रेरणा राघवी दी का आश्रम से यह बहिर्गमन देख काव्या का मन अस्थिर हो गया था। क्योंकि उसने भी प्रेम में धोखा खाकर आश्रम की शरण ली थी पर उसने अभी तक साध्वी-दीक्षा नहीं ली थी। एक रात, आश्रम से चुपके से निकल वह रागिनी-मंजीत के ठिकाने की ओर चल पड़ी। रात गहरी थी, मगर चाँद की मद्धिम रोशनी उसे रास्ता दिखा रही थी। उसका इरादा केवल यह देखना था कि क्या वह प्रेम, जो उसने अपने जीवन में खो दिया था, राघवी दी और मंजीत के जीवन में जीवित था? वह यह समझना चाहती थी कि-