त्रिकाल - रहस्य की अंतिम शिला - 9

  • 171
  • 75

गुफा की दीवारों पर जलती मशालें टिमटिमा रही थीं। हवा में घुटन-सी घुली थी, जैसे पत्थरों के भीतर दबी सदियों पुरानी कोई अनकही चीख अब भी जीवित हो। आर्यन आगे बढ़ा, उसके हाथ में वही धातु की जली हुई चाबी थी, जो “अग्नि द्वार” के पार मिली थी।ईशा की सांसें तेज़ थीं।“आर्यन… मुझे लग रहा है कोई हमें देख रहा है…”डॉ. ईशान वर्मा ने उसे टोका, “यह बस तुम्हारा भ्रम है, अंधेरे में दिमाग़ धोखा देता है।”लेकिन उसकी अपनी आँखें भी बेचैन थीं, जैसे कहीं भीतर उसे भी यक़ीन था कि कोई छुपा है।अचानक, दूर से मंत्रोच्चार की ध्वनि सुनाई