अध्याय 1: एक आम आदमी की सुबहसुबह के सात बजे थे। अलार्म की चीख ने जय मेहता की नींद तोड़ दी। आँखें मलते हुए वह उठा, और हमेशा की तरह, पहले बाथरूम में जाने से पहले उसने अपनी जेब टटोली। "बीस रुपये..." उसने बुदबुदाते हुए कहा। "लगता है आज का दिन भी कल जैसा ही होगा।" यह बीस रुपये उसकी दिनभर की कमाई थी, जो उसने कल शाम एक ग्राहक को चाय पिलाने के बदले में कमाए थे।जय की उम्र बाईस साल थी। वह एक छोटे से शहर से मुंबई आया था, बड़े सपने लेकर। लेकिन मुंबई ने उसे सिर्फ़