उपन्यास: अनकही दास्तानतीसरा अध्याय – अनकहे जज़्बातसर्दियों की सुबह थी। कॉलेज का कैंपस धुंध से ढका हुआ था। मैदान में ओस की बूँदें घास पर मोतियों की तरह चमक रही थीं। छात्र-छात्राएँ अपने-अपने ग्रुप में खड़े होकर बातें कर रहे थे, मगर आरव का ध्यान सिर्फ़ एक चेहरे पर था—सिया।सिया कैंटीन के बाहर दोस्तों के साथ खड़ी थी। वह हँस रही थी, मगर उसकी आँखों में हल्की-सी थकान छिपी हुई थी। आरव ने गौर किया कि पिछले कुछ दिनों से सिया ज़्यादा चुप रहने लगी थी।आरव के भीतर एक बेचैनी थी। उसने तय किया कि अब और चुप नहीं रहेगा।---हिम्मत