वो क्षण जब चेतना, विज्ञान और आध्यात्म का संधि स्थल बन गया।"जिन्हें तुम समय की सीमाओं में बांधते हो, वो काल के पार चलने लगे हैं..."ध्वनि थम चुकी थी।सारी गूंज, सारी आवाज़ें — जैसे किसी ने ब्रह्मांड की साँसें रोक दी हों।अन्तर्गर्भा शिला के भीतर, आर्यन के चारों ओर प्रकाश का एक विस्फोटक मंडल फैल रहा था।उसका शरीर स्थिर था, लेकिन उसकी चेतना… कहीं और पहुँच चुकी थी।मानसिक चेतना के भीतर…“मैं कौन हूँ?”आर्यन की आत्मा जैसे प्रश्नों के सागर में डूब रही थी।उसने खुद को एक गहरे अंधकारमय आकाश में तैरते हुए पाया — कोई ज़मीन नहीं, कोई शरीर नहीं