(पिछले एपिसोड में…)आयुष और प्रिया की मुलाकातों का सिलसिला बारिश की बूंदों जितना ही गहरा और अनकहा हो चुका था। उनकी हँसी, उनकी चुप्पियाँ, सब में एक अनकहा इकरार था। लेकिन इस इकरार के बीच आयुष के पुराने दर्द और प्रिया के भविष्य के डर ने कई सवाल छोड़ दिए थे…---सुबह की हल्की-हल्की धूप खिड़की से झाँक रही थी। प्रिया ने चाय का प्याला उठाकर खिड़की के पास रखा और बाहर देखा। पिछली रात हुई बारिश की वजह से बगीचे की मिट्टी में एक भीनी-भीनी खुशबू फैली हुई थी। उसने गहरी साँस ली और खुद से कहा —"काश, ज़िंदगी की