चीर बत्ती

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बरसात के मौसम की एक काली रात थी। आकाश में बादल गरज रहे थे, और हवा में मिट्टी की गंध के साथ किसी अजीब-सी नमी घुली हुई थी। गाँव के किनारे एक सुनसान बाग़ था, जिसके बीचों-बीच एक टूटा-फूटा कुआँ था। बुज़ुर्ग कहते थे की “उस कुएँ के पास रात में मत जाना, वहाँ ‘चीरबत्ती’ जलती है…”कहते हैं, कई साल पहले उसी कुएँ में एक औरत की लाश मिली थी, जिसने अपने गहनों और चूड़ियों के साथ छलांग लगाई थी। तब से, अमावस की रातों में वहाँ एक छोटी-सी लालटेन जैसी रोशनी जलती दिखती थी। लेकिन अजीब बात ये थी