पीछे मत देखना

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शीर्षक: “पीछे मत देखना”रवि देर रात ऑफिस में फँस गया था। घड़ी ने बारह बजाए और बिल्डिंग में अँधेरा छा गया। बैकअप लाइट सिर्फ़ उसकी मंज़िल पर टिमटिमा रही थी।लिफ्ट बंद थी, तो वो सीढ़ियों से उतरने लगा। सातवीं से छठी, फिर पाँचवीं मंज़िल… तभी उसे एक हल्की सी हँसी सुनाई दी। वो रुक गया। यह किसी छोटे बच्चे की हँसी थी।उसने सोचा—"शायद भ्रम होगा"—और आगे बढ़ा। पर अब वो हँसी करीब आती जा रही थी, जैसे कोई उसके पीछे-पीछे चल रहा हो।अचानक, उसके कान में एक धीमी सी फुसफुसाहट गूँजी—"पीछे मत देखो..."रवि का दिल जोर से धड़कने लगा। उसने