सर्दियों की काली अंधेरी रात..कोहरा जैसे कस्बे की गलियों को निगल रहा था। सड़कों पर अजीब सी चुप्पी थी।सिमरा के पुराने मंदिरों की घंटियाँ, हवा के झोंके से हल्की-हल्की बज रही थी।उस रात, शिवनाथ प्रसाद अपने घर के बरामदे पर शॉल ओढ़े बैठे आग सेंक रहे थे।अचानक... उनके चेहरे का रंग उड़ गया। आँखें फैल गईं, साँसे रुकने लगीं। वो काँप रहे थे जैसे कोई भयानक चीज़ देख ली हो।वो कुर्सी पर छटपटाने लगे, उन्होंने कांपते हाथों से गले को पकड़ने की कोशिश की, होंठ हिले...."न -न -न- नहीं !!!"अगले ही पल वो कुर्सी से गिर पड़े - मृत।सुबह रिपोर्ट