हुक्म और हसरत - 7

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हुक्म और हसरत   सुबह सिया दर्पण के सामने अपने बाल समेट रही थी।   पीठ पर लंबे खुले बाल, आँखों में नींद की नमी और होंठों पर एक छोटी सी मुस्कान…   रोशनी ने मज़ाक किया — “दीदी, आज आप सपना देखकर मुस्कुरा रही थीं।"   "के..क्या?"सिया ने चौंकते हुए कहा, “कुछ... याद नहीं।”   मगर उसका चेहरा कुछ और कह रहा था — उसने किसी को छुआ था… किसी को महसूस किया था। शायद अर्जुन को…   सिया तकिए पर सिर रख चुकी थी, मगर नींद उससे कोसों दूर थी।   धीरे-धीरे आँखें बंद हुईं…   ...और