खामोश ज़िंदगी के बोलते जज़्बात - 7

                     भाग:7                छोटे से पुस्तकालय             रचना:बाबुल हक़ अंसारी    कमरे में बैठकर आर्या ने अपनी पुरानी डायरी निकाली।पन्ना खोला और पढ़ने लगा— "वो जो नज़रों से उतर गया था,आज भी दिल के क़रीब है।वफ़ा की एक साँझ थी वो,जो बिना नाम के भी मुकम्मल थी…"अनया चौंकी —"ये… तो वही पंक्तियाँ हैं! जो 'नीरव' जी के नाम से मशहूर हैं।"आर्या ने सिर हिलाया,"और रघुवीर त्रिपाठी जी को यही ग़लतफ़हमी हुई थी कि नीरव ने उनसे चुराई हैं। जबकि ये तो मेरी