सन् 1953 की बात है, शहर के किनारे एक पुराना सरकारी अस्पताल खंडहर बन चुका था। लोग कहते थे, वहाँ कभी इलाज नहीं, बल्कि मौत का कारोबार होता था। रात में वहाँ से अजीब-अजीब चीखें, लोहे की जंजीरों की खड़खड़ाहट और किसी के धीरे-धीरे गलियारे में चलने की आवाज़ आती थी। गाँव के बूढ़े-बुजुर्ग कसम खाकर कहते थे कि उस अस्पताल की ईमारत में मरे हुए डॉक्टर और मरीज़ अब भी भटकते हैं। फिर भी, चार दोस्त अर्जुन, गोपाल, रामू और शंकर उस रहस्य को जानने की जिद में एक अमावस्या की रात वहाँ पहुंचे।अस्पताल का मुख्य दरवाज़ा जंग से भरा