उस पुराने गाँव के किनारे, जहाँ घने पीपल के पेड़ अपनी काली शाखाएँ आसमान की ओर फैलाते थे, एक हवेली खड़ी थी, जिसकी टूटी खिड़कियों से रात को सिर्फ ठंडी हवा नहीं, बल्कि किसी अनजाने भय की फुसफुसाहट भी आती थी। कहते हैं, उस हवेली में अमावस्या की रात को कोई दीपक नहीं जलाता, क्योंकि वहाँ जो रोशनी जलती है, वो इंसानों की नहीं, किसी और की होती है। गाँव के बुजुर्ग अक्सर बच्चों को चेतावनी देते, “उस रात घर से बाहर मत निकलना, वरना तुम वापस लौटकर शायद इंसान ही न रहो।”वो अमावस्या की रात थी। आसमान में चाँद