---(भाग 1)बारिश अब कम हो गई थी, लेकिन कॉलेज के लॉन में गीली मिट्टी की महक अभी भी बनी हुई थी। पिछले दिनों की मुलाकातों ने अन्वी और विवेक के बीच अजीब-सा खिंचाव पैदा कर दिया था। वे दोनों खुद को एक-दूसरे की तरफ खिंचता महसूस करते थे, लेकिन कोई भी अपने दिल की बात कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।उस दिन, लंच ब्रेक में विवेक ने देखा कि अन्वी कैंटीन में अकेली बैठी है। उसने धीरे-धीरे पास जाकर कहा —"चलो, आज फिर वही झील चलते हैं।"अन्वी ने किताब बंद करते हुए हल्की मुस्कान दी —"तुम्हें लगता है