" दीदी आप क्या हमारे रोहित महोदय की कहानी सुना रही हैं?" साधकों का ऐसा अनुमान लगता देखकर यशस्विनी खिलखिला कर हंस पड़ी और रोहित झेंप गए क्योंकि जब उन्होंने बहुत ध्यान से यशस्विनी का यह व्याख्यान और प्रदर्शन देखा तो वे मन ही मन स्व-आकलन कर रहे थे।रोहित मुश्किल से पहले या दूसरे चक्र तक ही केंद्रित थे। उन्हें तीसरे चक्र के प्रभाव की अनुभूति भी कभी-कभी होती थी। अपनी आध्यात्मिक भावना, सज्जनता, ईमानदारी और मेहनत के कारण ही वे अनजाने ही इस दूसरे और तीसरे चक्र तक पहुंच पाए थे। एक साधक ने पूछा-"