भाग :7 रचना: बाबुल हक़ अंसारी "एक ख़त, जो वक़्त के नीचे दबा था…"[पिछली रात की खामोशी के बाद…]अयान के लौटते ही रिया ने चुपचाप आर्यन की ओर देखा।वो जाना चाहती थी, उसे रोकना भी चाहती थी…पर उसके कदम उस मोड़ तक पहुँच चुके थे,जहाँ से लौटना अब मुमकिन न था।और उधर, आर्यन अपनी धड़कनों से तेज़ चलता हुआपुराने रेलवे स्टेशन की बेंच पर बैठ गया — जहाँ वोपहली बार रिया से मिला था।तभी उसकी जेब में पड़े पुराने डायरी के पन्ने