दादी ने आंखें घुमाईं, "अच्छा? तो मतलब मैं ठंड से कांप रही हूं, और तुम लोग यहां षड्यंत्र की गर्मी फैला रहे थे?" उन्होंने हंसते हुए अपनी छड़ी से हल्के से देव के घुटने पर टकराया, "और तुम, देव बाबू! इतनी गंभीर बातें करने की क्या ज़रूरत थी? कोई हलवा-पूरी की चर्चा कर रहे थे क्या?"देव हड़बड़ाकर बोला, "न-नहीं , बस यूं ही... कुछ व्यापार की बातें कर रहे थे।"दादी ने उनकी ओर देखा और फिर मुस्कराई, "अच्छा, अच्छा! व्यापार की बातें! पर देखो, बेटा, व्यापार दिल से किया जाता है, साजिशों से नहीं। और जो लोग दूसरों के लिए