खून का टीका - भाग 10

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पार्ट 10रात गहरी हो चुकी थी। हवाओं में अजीब सी सर्दी थी, जबकि मौसम में ठंड का नाम तक नहीं था। नंदिनी अपने कमरे में बार-बार करवट बदल रही थी। दिन भर के हादसों ने उसके मन को झकझोर दिया था—वो खून, वो टीका, और वह अजनबी औरत जो अचानक मंदिर के पिछवाड़े मिली थी।अचानक, खिड़की पर टक-टक की आवाज हुई। नंदिनी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। वह धीरे से उठी और परदे के पीछे से झाँका—बाहर अंधेरे में एक परछाईं खड़ी थी। उसकी आकृति धुंधली थी, पर हाथ में कुछ चमक रहा था… शायद एक चाकू!"क…कौन?" नंदिनी की