खून का टीका - भाग 9

पार्ट 9रात के सन्नाटे में हवेली के पुराने हिस्से से फिर वही अजीब सी खटखटाहट आने लगी। बारिश रुक चुकी थी, लेकिन हवा में अब भी नमी और डर की गंध तैर रही थी।रश्मि ने अपने कमरे की खिड़की से झाँका— आँगन के कोने में कोई परछाईं झुककर कुछ खोद रही थी। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।"ये कौन हो सकता है इतनी रात में?" उसने खुद से कहा।दिल में डर और जिज्ञासा एक साथ उमड़ पड़ी। उसने टॉर्च उठाई और धीरे से कमरे का दरवाज़ा खोला। सीढ़ियों पर कदम रखते ही लकड़ी चरमराई। रश्मि ठिठक गई, कहीं आवाज़ सुनकर वो