* जीवन की दूसरी पारी खेलते हुए रामेश्वरी नादान के लिखे “दूसरी पारी” उपन्यास को पढ़ना - एक सुखद अनुभव से गुजरना है। जैसा मैं पहले भी एकाधिक बार बता चुका हूँ कि नए या पुराने लेखकों की पुस्तकें पढ़ना मेरा शौक है | उम्र की पचहत्तरवीं पायदान पर हूँ , शरीर के ढेर सारे ऑपरेशनों से गुजर चुका हूँ इसलिए बहुत ज्यादा तो पढ़ नहीं पाता हूँ किन्तु.. दिल है कि मानता नहीं ! इस पुस्तक को मैंने उस दौर में पढ़ा है और इसकी समीक्षा लिख रहा हूँ जब साहित्य जगत के सर्वोच्च माने जाने वाले ज्यादातर लोग