अब आगे, दिग्विजय जी हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाते हैं।सिद्धि आत्मविश्वास से कहती है,"अंकल, ये नौकरी मुझे मेरी काबिलियत के आधार पर दीजिए, सिर्फ इसलिए नहीं कि मैंने आपकी जान बचाई थी।"दिग्विजय जी उसकी बात सुनकर प्रसन्न होते हैं।"बिलकुल बेटा," वे कहते हैं, "और इसमें बुरा मानने जैसी कोई बात नहीं है। मुझे खुशी है कि तुमने इस मौके का गलत फायदा नहीं उठाया, बल्कि खुद मेहनत से नौकरी ढूंढ रही हो। ऐसे ईमानदार लोग आजकल बहुत कम मिलते हैं।"सिद्धि मुस्कुराकर उन्हें धन्यवाद कहती है और सादगी से कहती है,"अपना ध्यान रखिएगा अंकल।"वो जाने को पलटती है, तभी दिग्विजय जी