भाग5: "मंच पर बिछी परछाइयाँ…" रचना:बाबुल हक़ अंसारीपिछले खंड से… आर्या अब जानती थी —सिर्फ़ नीरव से उसका रिश्ता दांव पर नहीं है,बल्कि अब एक पूरी पीढ़ी के भरोसे की परीक्षा थी।आश्रम का बड़ा आँगन इस बार कुछ अलग लग रहा था।चारों तरफ़ कुर्सियाँ सजी थीं, बीच में एक छोटा-सा मंच और उस पर माइक के पास रखा एक खाली स्टैंड — जिस पर शाम को कविता पाठ होना था।यह वही आयोजन था, जिसे आश्रम हर साल करता था, लेकिन इस बार माहौल में एक अजीब-सी बेचैनी थी।क्योंकि इस बार मंच पर नीरव