सिसकती वफ़ा: एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल दास्तान - 7

           रचना: बाबुल हक़ अंसारीभाग 7: "जब शब्द नहीं थे, सुर बोले थे"पिछले अध्याय की कुछ पंक्तियाँ:   "अब आर्यन लौट आया है,लेकिन अब वो किसी एक का नहीं…वो हर उस धुन में है जो वफ़ा से निकली हो।"रात ढल रही थी, लेकिन स्टूडियो की रौशनी बुझी नहीं थी।अयान बेसमेंट के एक कोने में पुराने बक्से टटोल रहा था,जहाँ आर्यन की पुरानी स्क्रिप्ट्स, नोट्स और रिकॉर्डिंग्स रखे थे।एक धूल भरे लिफाफे मेंएक चिट्ठी मिली — बिना भेजी गई, पीले पन्नों पर अधूरी स्याही से लिखी हुई।"आयशा के नाम"(आर्यन की लिखावट में…)  "अगर कभी मैं लौट न पाऊँ,तो