अरावली की पहाड़ियों पर वह सुबह कुछ अलग थी। हलकी गुलाबी धूप धीरे-धीरे पहाड़ियों की चोटी से उतर रही थी और नीचे फैली धूलभरी घाटियों को छू रही थी। बांस और बबूल के झुरमुटों के बीच एक छोटी-सी घास की ढलान थी, जहाँ एक बूढ़ा सेवक बार-बार अपनी नज़रें उठा रहा था। उसका नाम था रायमल। वह वर्षों से मेवाड़ की तबेलियों का मुख्य सेवक था, घोड़ों की भाषा समझता था, उनकी चाल, उनकी सांस, उनके हिनहिनाने तक में अर्थ ढूंढ़ लेता था।आज उसकी आंखों में प्रतीक्षा थी। साँझ से ही एक विशेष घोड़ी प्रसव वेदना में थी। वह घोड़ी